श्री सिद्धचक्र का पाठ करो, दिन आठ,

ठाठ से प्रानी, फल पायो मैना रानी ||

 

मैना सुन्दरि इक नारी थी, कोढ़ी पति लख दु:खियारी थी,

नहिं पड़े चैन दिन रैन व्यथित अकुलानी |

फल पायो मैना रानी ||1||

 

जो पति का कुष्ठ मिटाऊँगी, तो उभयलोक सुख पाऊँगी,

नहिं अजा गल-स्तन वत् निष्फल जिन्दगानी |

फल पायो मैना रानी ||2||

 

एक दिवस गई जिन मंदिर में, दर्शन कर अति हरषी उर में,

फिर लखे साधु निर्ग्रन्थ दिगम्बर ज्ञानी |

फल पायो मैना रानी ||3||

 

बैठी कर मुनि को नमस्कार, निज निन्दा करती बार-बार,

भर अश्रु नयन कहि मुनि सों दु:खद कहानी |

फल पायो मैना रानी ||4||

 

बोले मुनि पुत्री! धैर्य धरो, श्री सिद्धचक्र का पाठ करो,

नहिं रहे कुष्ठ की तन में नाम निशानी |

फल पायो मैना रानी ||5||

 

सुन साधु वचन हरषी मैना, नहिं होंय झूठ मुनि के बैना,

करके श्रद्धा श्री सिद्धचक्र की ठानी |

फल पायो मैना रानी ||6||

 

जब पर्व-अठाई आया था, उत्सव-युत पाठ कराया था,

सब के तन छिड़का यंत्र-न्हवन का पानी |

फल पायो मैना रानी ||7||

 

गंधोदक छिड़कत वसु दिन में, नहिं रहा कुष्ठ किंचित् तन में,

भई सात शतक की काया स्वर्ण समानी |

फल पायो मैना रानी ||8||

 

भव-भोग भोगि योगीश भये, श्रीपाल कर्म हनि मोक्ष गये,

दूजे भव मैना पाई शिव रजधानी |

फल पायो मैना रानी ||9||

 

जो पाठ करें मन वच तन से, वे छूट जायँ भव बंधन से,

‘मक्खन’ मत करो विकल्प कहे जिनवाणी |